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रूठी थी किस्मत मेरी भी अब मेहरबान हो गयी…।

“श्याम” के नाम से ही…. अब मेरी पहचान हो गयी ।।

खाटू नरेश की जय

जो तेरे नाम पर ही श्याम, जीते है मरते हैं,

उनके दिन सुख चैन से ही, सदा गुजरते हैं

तुमसे ही लगन लगाते हैं, रात-दिन तेरे खाते हैं।।

।। जय श्री श्याम।।

मेरे श्याम न जाने कितनी मिठास है तेरे नाम मे
सुबह-सुबह जो श्याम श्याम कह दिया
तो सारा दिन मुँह मीठा मीठा रहता हैं

|| जय श्री श्याम ||

कहते है लोग अक्सर मुझे कि बावला हूँ मैं…

उनको क्या पता कि अपने श्याम का लाड़ला हूँ मैं…

|| जय श्री श्याम ||

आँखो की चमक पलकों की शान हो तुम,
चेहरे की हंसी लबों की मुस्कान हो तुम।।
घड़कता है दिल बस श्याम तुम्हारी आरजू में
फिर कैसे ना कहूँ श्याम मेरी जान हो तुम।।
।। जय श्री श्याम।।

Message Pitara

दुनिया के आगे हारूँगा तो तेरी और निहारूँगा
जो हारा तेरे सामने मैं तो किसको श्याम पुकारूंगा

😊🌹🙏जय श्री श्याम🙏🌹

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दुनिया के आगे हारूँगा तो तेरी और निहारूँगा
जो हारा तेरे सामने मैं तो किसको श्याम पुकारूंगा

😊🌹🙏जय श्री श्याम🙏🌹

Message Pitara

हौले 👣 हौले 👣 ही सही मगर ये पैगाम आ रहे हैं

अपने भक्तों 🙇‍♂️ से मिलने इस अष्टमी को नंदलाल
... आ 🚶‍♂️ रहे है ...

आओ पधारो म्हारे आंगणियें नंदलाला ...😊
बंसी 🎷 जोर की बजाया ओ नंदलाला ... 🙏🏻😊🙏🏻
माखन 🍚 मिश्री  🥡 को भोग लगाया ओ नंदलाला ...🙏🏻😊🙏🏻

Message Pitara

हनुमानजी की आरती

॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं, जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं, श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥

॥ आरती ॥
आरती किजे हनुमान लला क

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हनुमानजी की आरती

॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं, जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं, श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥

॥ आरती ॥
आरती किजे हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

जाके बल से गिरवर काँपे। रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई ॥

दे वीरा रघुनाथ पठाये। लंका जाये सिया सुधी लाये ॥
लंका सी कोट संमदर सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई ॥

लंका जारि असुर संहारे। सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे। आनि संजिवन प्राण उबारे ॥

पैठि पताल तोरि जम कारे। अहिरावन की भुजा उखारे ॥
बायें भुजा असुर दल मारे। दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥

सुर नर मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे ॥
कचंन थाल कपूर लौ छाई। आरती करत अंजनी माई ॥

जो हनुमान जी की आरती गाये। बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥
लंका विध्वंश किये रघुराई। तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई ॥

आरती किजे हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

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श्री राणी सती दादी जी चालीसा

॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन, दुषित भाव सुधार,
राणी सती सू विमल यश, बरणौ मति अनुसार,
काम क्रोध मद लोभ मै, भरम रह्यो संसार,
शरण गहि करूणामई, सुख सम्पति संसार॥

॥ चौप

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श्री राणी सती दादी जी चालीसा

॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन, दुषित भाव सुधार,
राणी सती सू विमल यश, बरणौ मति अनुसार,
काम क्रोध मद लोभ मै, भरम रह्यो संसार,
शरण गहि करूणामई, सुख सम्पति संसार॥

॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी, जग विख्यात सभी मन मानी।
नमो नमो संकट कू हरनी, मनवांछित पूरण सब करनी ॥2॥

नमो नमो जय जय जगदंबा, भक्तन काज न होय विलंबा।
नमो नमो जय जय जगतारिणी, सेवक जन के काज सुधारिणी ॥४॥

दिव्य रूप सिर चूनर सोहे, जगमगात कुन्डल मन मोहे।
मांग सिंदूर सुकाजर टीकी, गजमुक्ता नथ सुंदर नीकी ॥६॥

गल वैजंती माल विराजे, सोलहूं साज बदन पे साजे।
धन्य भाग गुरसामलजी को, महम डोकवा जन्म सती को ॥८॥

तनधनदास पति वर पाये, आनंद मंगल होत सवाये।
जालीराम पुत्र वधु होके, वंश पवित्र किया कुल दोके॥

पति देव रण मॉय जुझारे, सति रूप हो शत्रु संहारे।
पति संग ले सद् गती पाई , सुर मन हर्ष सुमन बरसाई॥

धन्य भाग उस राणा जी को, सुफल हुवा कर दरस सती का।
विक्रम तेरह सौ बावन कूं, मंगसिर बदी नौमी मंगल कूं॥

नगर झून्झूनू प्रगटी माता, जग विख्यात सुमंगल दाता।
दूर देश के यात्री आवै, धुप दिप नैवैध्य चढावे॥

उछाङ उछाङते है आनंद से, पूजा तन मन धन श्रीफल से।
जात जङूला रात जगावे, बांसल गोत्री सभी मनावे॥

पूजन पाठ पठन द्विज करते, वेद ध्वनि मुख से उच्चरते।
नाना भाँति भाँति पकवाना, विप्र जनो को न्यूत जिमाना॥

श्रद्धा भक्ति सहित हरसाते, सेवक मनवांछित फल पाते।
जय जय कार करे नर नारी, श्री राणी सतीजी की बलिहारी॥

द्वार कोट नित नौबत बाजे, होत सिंगार साज अति साजे।
रत्न सिंघासन झलके नीको, पलपल छिनछिन ध्यान सती को॥

भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला, भरता मेला रंग रंगीला।
भक्त सूजन की सकल भीङ है, दरशन के हित नही छीङ है॥

अटल भुवन मे ज्योति तिहारी, तेज पूंज जग मग उजियारी।
आदि शक्ति मे मिली ज्योति है, देश देश मे भवन भौति है॥

नाना विधी से पूजा करते, निश दिन ध्यान तिहारो धरते।
कष्ट निवारिणी दुख: नासिनी, करूणामयी झुन्झुनू वासिनी॥

प्रथम सती नारायणी नामा, द्वादश और हुई इस धामा।
तिहूं लोक मे कीरति छाई, राणी सतीजी की फिरी दुहाई॥

सुबह शाम आरती उतारे, नौबत घंटा ध्वनि टंकारे।
राग छत्तीसों बाजा बाजे, तेरहु मंड सुन्दर अति साजे ॥

त्राहि त्राहि मै शरण आपकी, पुरी मन की आस दास की।
मुझको एक भरोसो तेरो, आन सुधारो मैया कारज मेरो॥

पूजा जप तप नेम न जानू, निर्मल महिमा नित्य बखानू।
भक्तन की आपत्ति हर लिनी, पुत्र पौत्र सम्पत्ति वर दीनी॥

पढे चालीसा जो शतबारा, होय सिद्ध मन माहि विचारा।
टिबरिया ली शरण तिहारी, क्षमा करो सब चूक हमारी॥

॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण, जन जीवन आधार।
बिगङी बात सुधारियो, सब अपराध बिसार॥

॥ मात श्री राणी सतीजी की जय ॥

Message Pitara

श्री लक्ष्मी चालीसा

॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥

॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ च

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श्री लक्ष्मी चालीसा

॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥

॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥1॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥

॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

Message Pitara

सरस्वती चालीसा

॥दोहा॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

॥चा

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सरस्वती चालीसा

॥दोहा॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

॥चालीसा॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥१॥

रूप चतुर्भुज धारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥२॥

तब ही मातु का निज अवतारी। पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥३॥

रामचरित जो रचे बनाई। आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥४॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा। केव कृपा आपकी अम्बा॥५॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता। तेहि न धरई चित माता॥६॥

राखु लाज जननि अब मेरी। विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥७॥

मधुकैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥८॥

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला। बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥९॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता। क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी। सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥१०॥

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा। बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा। क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥११॥

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा। सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥१२॥

को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥१३॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥१४॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे। कानन में घेरे मृग नाहे॥१५॥

सागर मध्य पोत के भंजे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥१६॥

नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥१७॥

करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥१८॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥१९॥

रामसागर बाँधि हेतु भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी।

॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

Message Pitara

श्री राणी सती दादी जी आरती

ॐ जय श्री राणी सती माता, मैया जय राणी सती माता।
अपने भक्त जनन की दूर करन विपत्ती॥ ॐ जय ॥

अवनि अननंतर ज्योति अखंडीत, मंडितचहुँक कुंभा।
दुर्जन दलन खडग की विद्युतसम प

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श्री राणी सती दादी जी आरती

ॐ जय श्री राणी सती माता, मैया जय राणी सती माता।
अपने भक्त जनन की दूर करन विपत्ती॥ ॐ जय ॥

अवनि अननंतर ज्योति अखंडीत, मंडितचहुँक कुंभा।
दुर्जन दलन खडग की विद्युतसम प्रतिभा॥ ॐ जय ॥

मरकत मणि मंदिर अतिमंजुल, शोभा लखि न पडे।
ललित ध्वजा चहुँ ओरे , कंचन कलश धरे॥ ॐ जय ॥

घंटा घनन घडावल बाजे, शंख मृदुग घूरे।
किन्नर गायन करते वेद ध्वनि उचरे॥ ॐ जय ॥

सप्त मात्रिका करे आरती, सुरगण ध्यान धरे।
विविध प्रकार के व्यजंन, श्रीफल भेट धरे॥ ॐ जय ॥

संकट विकट विदारनि, नाशनि हो कुमति।
सेवक जन ह्रदय पटले, मृदूल करन सुमति॥ ॐ जय ॥

अमल कमल दल लोचनी, मोचनी त्रय तापा।
त्रिलोक चंद्र मैया तेरी,शरण गहुँ माता॥ ॐ जय ॥

या मैया जी की आरती, प्रतिदिन जो कोई गाता।
सदन सिद्ध नव निध फल, मनवांछित पावे॥ ॐ जय ॥

आज के इस शुभ दिन पर
आपके प्रारंभिक वैवाहिक जीवन की यात्रा;
आपसी प्यार, समर्पण और सुन्दर तालमेल से
आपकी जीवन बगियाँ खुशियों से महक उठे;
“प्रभु राधा-कृष्ण की तरह हमेशा आपकी जोड़ी बनाये रखें।”
सालगिरह मुबारक!

रब ना करे कभी तुम्हें खुशियों की कमी हो;
तुम्हारे क़दमों के नीचे फूलों की ज़मीन हो;
आँसू ना हो तुम्हारी आँखों में कभी;
अगर हो तो वो खुशियों की नमी हो।
सालगिरह मुबारक!

बहुत-बहुत मुबारक हो ये समां
बड़ा नायाब लग रहा होगा जहान
खुशियाँ बाँटो एक दूसरे के संग
रास आए आपको सालगिरह का हर रंग!

जगमगाती रहे चाँद सी रोशनी ।
नीला गगन संग अम्बार लेकर ।
रौनक भरे जिंदगी में गजल
ख़ुशियाँ लुटाये जग में नवी बन ।
नीले गगन से दिनकर भी पूछे
कैसी फ़िज़ा है मेरे यार की ।।
नीले गगन में मेंघों की गर्जन
खुशियाँ बिखेरे तबस्सुम के जैसी ।।
जीवन की नौका मचलती रहे
प्रेम की माँझी में नित संवरती रहे।।
जीवन भी मुस्कान बिखेरे फूल खिले।
रिमझिम सावन नीर मिले ।।

ऊपर जिसका अंत नहीं उसे ‘आसमां’ कहते हैं,
इस जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे ‘माँ’ कहते हैं..!!

फूलों की सुगंध से सुगन्धित हो जीवन तुम्हारा,
तारों की चमक से सम्मिलित हो जीवन तुम्हारा,
उम्र आपकी हो सूरज जैसी,
याद रखे जिसे हमेशा दुनिया,
जन्मदिन में आप महफ़िल सजाएं आप ऐसी,
शुभ दिन ये आये आपके जीवन में हज़ार बार,
और हम आपको “जन्मदिन मुबारक ” कहते रहे हर बार …

पला पोसा बड़ा किया, कष्ट दिया न कोय,
अपनी तो संतान की चिंता, हर माँ-बाप को होय।
यही जीवन का सार है, यही हैं पालनहार,
आज्ञा में जो रहे इनकी, सब खुशियाँ मिलती तोय।
--------------- माँ पिता  --------------

माँ की ममता सबसे प्यारी,
सारे जग में सबसे न्यारी,
सबके दिल को भाने वाली,
प्यार का मोल सिखाने वाली.
पिता का प्यार भी है अनोखा,
सारे जीवन को उमंगों से भरता,
हाथ पकड़कर चलना सिखाए,
जीवन की नयी राह दिखायें.
मात पिता की सेवा करना,
प्यार नम्रता में ही चलना,
सदाचार अपनाते रहना,
जीवन खुशियों से तुम भरना

Message Pitara

जो खोटे सिक्के कभी चले नहीं बाजार में,
आज कमियां ढूंढ रहे हैं हमारे किरदार में!

Message Pitara

मेरा दिल भी कितना भोला है टूट कर रोते हुए भी,

अपने सनम की ख़ुशी की दुआ मांगता हैं.

Message Pitara

तेरी मोहब्बत भी ... किराए के घर ... की तरह थी ..

कितना भी ... सजाया पर ..... मेरी नहीं हुई

Message Pitara

एकछोटी सी Love Story
एक लड़का 😎 एक लड़की👸के पीछे हाथ धोकर पड़ा था,,,,.

फिर एक दिन लड़की 👸 ने मुँह धोकर दिखा दिया
.
(अब दोनों आराम से अपने अपने रास्ते जाते हैं)😂

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एकछोटी सी Love Story
एक लड़का 😎 एक लड़की👸के पीछे हाथ धोकर पड़ा था,,,,.

फिर एक दिन लड़की 👸 ने मुँह धोकर दिखा दिया
.
(अब दोनों आराम से अपने अपने रास्ते जाते हैं)😂

माँ-  बेटा दादी को बर्थडे पर क्या गिफ्ट दोगे?

बेटा- मैं दादी को फुटबॉल दूंगा

माँ- अरे बेटा, दादी इस उम्र में फुटबॉल का क्या करेंगी?

बेटा- उन्होंने भी तो मेरे बर्थडे पर मुझे भगवत गीता दी थी

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